ये पोस्ट मुझे एक बुजुर्ग चित्रांश ने भेजा है कृपया जरूर पढ़े और अपना मत जरूर लिखे।
किसी मेले में एक स्टाल लगा था जिस पर लिखा था , बुद्धि विक्रय केंद्र ” ! लोगो की भीड उस स्टाल पर लगी थी ! मै भी पहुंचा तो देखा कि उस स्टाल पर अलग अलग शीशे के जार में कुछ रखा हुआ था !
एक जार पर लिखा था- कायस्थ की बुद्धि-500 रुपये किलो
दूसरे जार पर लिखा था – दलित की बुद्धि-1000 रुपये किलो
तीसरे जार पर लिखा था- क्षत्रिय की बुद्धि-2000 रुपये किलो
चौथे जार पर लिखा था- यादव की बुद्धि- 50000 रुपये किलो और
पांचवे जार पर लिखा था- ब्राह्मण की बुद्धि-100000 रुपया किलो।
मैं हैरान कि इस दुष्ट ने कायस्थ की बुद्धि की इतनी कम कीमत क्यों लगाई? गुस्सा भी आया कि इसकी इतनी मजाल, अभी मजा चखाता हूँ। गुस्से से लाल मै भीड को चीरते हुआ दुकानदार के पास पहुंचा और उससे पूछा कि तेरी हिम्मत कैसे हुयी जो कायस्थ की बुद्धि इतनी सस्ती बेचने की ?
उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कराया, हुजूर बाजार के नियमानुसार… जो चीज ज्यादा उत्पादित होती है, उसका रेट गिर जाता है ! आपलोगो की इसी बहुतायत बुद्धि के कारण ही तो आपलोग दीनहीन पड़े हैं ! राजनीति में कोई पूछने वाला भी नहीं है आपलोगों को.. स्वर्णिम इतिहास होने के बावजूद विकास की धारा से हट चुके हैं आप लोग… सब एक दूसरे की टांग खींचते हैं और सिर्फ अपना नाम बडा देखना चाहते हैं ! किसी को सहयोग नहीं करते… काम करने वाले की आलोचना करते है और नीचा दिखाते हैं ! आज हर समाज में एकता देखने को मिलती है सिर्फ कायस्थ समाज को छोड़कर… जाइये साहब…पहले अपने समाज को समझाइये और मुकाम हासिल करिए ! और फिर आइयेगा मेरे पास… तो आप जिस रेट में कहेंगे, उस रेट में आपकी बिरादरी की बुद्धि बेचूंगा !! मेरी जुबान पर ताला लग गया और मैं अपना सा मुंह लेकर चला आया ! इस छोटी सी कहानी के माध्यम से जो कुछ मैं कहना चाहता हूं, आशा करता हूँ कि समझने वाले समझ गये होंगे ! और जो ना समझना चाहे वो अपने आपको बहुत बडा खिलाडी समझ सकते हैं !!!!! (नोट : कृपया इस पोस्ट को केवल कायस्थों के बीच आगे बढ़ाएँ और सुधार हेतु चर्चा करें ) |