कायस्थ का ऐतिहासिक स्थिति

कायस्थों की सामाजिक स्थिति आज भी प्रभावशाली है I इनकी मेधा, बुद्धि की क्षमता, शासन करने के गुण व आभिजात्य आज भी उल्लेखनीय हैं I वर्णव्यवस्था के चारो वर्णों में स्थान न पाने के बावजूद प्राचीन काल (ई पू 600 बी सी से ई सन् 1206) में समाज में कायस्थों की स्थिति बहुत सम्मानजनक थी I ये सामान्य रूप से तत्कालीन शासकों के यहाँ लेखक और गणक का कार्य तो करते ही थे, कई क्षेत्रों में ये शासक भी थे I कुछ लोगों का कहना हैं कि रघुवंशियों के पहले अयोध्या पर माथुर कायस्थों का शासन थाI भारत पर मुहम्मद गजनी के आक्रमण को अफगानिस्तान के जिस राजा जयपाल ने रोकना चाहा था वह कायस्थ थे I

   कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार कायस्थ कश्मीरी शासकों के अधीन बहुत उँचे पदों पर थेI कायस्थ राजा ललितादित्य मुक्तापीड़, आठवीं सदी, में कश्मीर पर शासन कर रहे थेI कश्मीर की राजनीति में कायस्थों की अच्छी दखल थीI चौथी सदी में गुप्त साम्राज्य के अंतर्गत बंगाल में पहली बार आर्यों, कायस्थों और ब्राह्मणों की कालोनियाँ बनीं तो गुप्त शासकों ने इसकी व्यवस्था में कायस्थों की सहायता लीI  

   अकबर के प्रधान मंत्री अबुल फजल के अनुसार बंगाल के पाल शासक कायस्थ थेI यहाँ के बारहवीं सदी के सेन शासक भी गौड़ कायस्थ थेI विवेकानंद के अनुसार एक समय आधे भारत पर कायस्थों का शासन था I    वस्तुत: तेरहवीं सदी के पूर्व तक हिंदू राजाओं के शासन की उँची नौकरियों पर कायस्थों का लगभग एकाधिकार थाI दक्षिण के चोल, चालुक्य और पहलव आदि शासक कायस्थ ही थे I ब्रिटिशकाल में कराए गए भारत के एक मानवशास्त्रीय सर्वेक्षण में मानवशास्त्रियों ने पाया था कि कायस्थ मौर्य काल में भी शासन के अंग थे और बहुत प्रभावशाली थेI कई अभिलेख ऐसे भी मिलते हैं जिसमें खासकर कायस्थों को दान में भूमि देने का उल्लेख हैं I  

    संवत् 907 विक्रम (सन् 850 ईI) में विद्यमान मेधातिथि ने मनुस्मृति की अपनी टीका में स्वीकार किया है कि राजा द्वारा दी हुई भूमि आदि का शासन कायस्थ के हाथ का लिखा ही प्रमाणित माना जाता था I

  मध्ययुग के सल्तनत व मुगलकाल (1206-1526 य1526-1707)  में भी कायस्थों ने अपना प्रभुत्व बनाए रखा थाI मुगलकाल में राजभाषा पर्सियन थीI इन लोगों ने शासन की राजभाषा पर्सियन पर अधिकार किया और इस शासन के उंचे पदों पर नियुक्ति पाईI अकबर की मंत्रिपरिषद में राजस्व मंत्री राजा टोडरमल थे जो कायस्थ थेI इन्होंने ही अकबर की राजस्व-नीति की नींव रखी थी जो कमोबेश आज भी मान्य हैI इन्होंने गीता का पर्सियन में अनुवाद भी किया थाI
  राजा टोडरमल ने पटना के नौजर घाट में कायस्थों के आराध्य ‘चित्रगुप्त’ की काले पत्थर की एक छोटी पर भव्य मूर्ति स्थापित करवाई थी जो आज भी हैI यह मूर्ति आज से कुछ वर्षों पूर्व चोरी चली गई थीI वह मिलीI इस मूर्ति को उस गाँव के एक ग्रामीण श्रवण भगत ने सहेजकर रखा अभी कुछ समय पहले सोनपुर के एक गाँव चित्रसेनपुर के चौर से मिट्टी काटने के दौरान था I  अब इस मूर्ति को नौजर घाट के उसी मंदिर में पुनस्र्थापित कर दिया गया है
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    ब्रिटिश शासक मुगलों से दुराव रखते थे क्योंकि उन्हें ही अपदस्थ कर वे सत्ता में आए थेI कायस्थ मुगल शासन में ऊँचे ओहदों पर रह चुके थे I अत: अंग्रेज कायस्थों को भी अच्छी नजर से नही देखते थेI
मुस्लिम पीरियड में हर मामले का फैसला मुस्लिम कानूनों के अनुसार होता थाI ब्रिटिश शासकों ने        अपना रेगुलेशन सन् 1772 ई में पारित किया जो एक निश्चत सीमा तक हिंदू विधि को पुनर्स्थापित कियाI यह सन् 1793 ई में लागू हुआ I  हिंदू धर्मशास्त्रों की खोज की गई  ब्रिटिश विद्वानों ने उनका अध्ययन किया, लेख और डाइजेस्ट लिखे I

   हिंदू धर्मशास्त्रों में शूद्रों के लिए उँची नौकरियों में नियुक्ति वर्जित थी I  अत: कुछ उच्च जातियों ने कायस्थों को स्थायी रूप से शूद्र घोषित कराने के लिए सन् 1873 ई में कलकत्ता हाईकोर्ट में एक वाद दाखिल किया I वे शासन में उँची नौकरियों को अपने लिए सुरक्षित करा लेना चाहते थे, किंतु इसकी भनक लगते ही बंगाल, बंबई और संयुक्त प्रांत (आज का उत्तर प्रदेश) के कायस्थों ने उच्च न्यायालय में इस वाद का विरोध कियाI इनमें इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला के संस्थापक काली प्रसाद कुलभाष्कर भी थेI इन लोगों ने शूद्रत्व के विरुद्ध अनेक धार्मिक, साहित्यिक और ऐतिहासिक साक्ष्य जुटाए और न्यायालय में पेश किया I इन साक्ष्यों में उन लोगों ने कायस्थ को क्षत्रिय वर्ण के रूप में पेश कियाI सन् 1877 ई में इस वाद का फैसला आयाI वाद में कायस्थों को शूद्र घोषित करने के लिए किए गए उच्च जातियों के अनुरोध को न्यायालय ने खारिज कर दियाI फलत: कायस्थों को शूद्रत्व से छुटकारा मिल गयाI और अंग्रेजी शासन की जनसांख्यिकी में इन्हें (कायस्थों को) शूद्रों की श्रेणी में दर्ज नहीं किया गयाI किंतु यह समुदाय मेधावी तो था ही I जिस तरह इस समुदाय ने अरबी और पर्सियन पर अधिकार किया था वैसे ही इन्होंने बहुत आसानी से अंग्रेजी भाषा में भी महारत हासिल कर ली और अंग्रेजों के शासन में भी ये उँचे पद प्राप्त करने में सफल हो सके I      स्वतंत्रता प्राप्ति के समय तक ब्रिटिश शासन की सेवा में होने का इनका प्रतिशत बहुत ऊँचा थाI सन् 1765 ई में बक्सर की लड़ाई में मुगल शासक शाह आलम के अंग्रेजों से हारने के बाद कंपनी सरकार को जब बिहार और उड़िसा की दीवानी मिली थी तो राजा सिताब राय को दोनों प्रांतो का दीवान बनाया गया था जो कायस्थ थेI स्वतंत्रता की लड़ाई में भी कायस्थों ने बढचढ़़कर हिस्सा लिया थाI

  मुस्लिम काल में कायस्थों के प्रभाव का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि सरकारी राजस्व का लेखाजोखा कायस्थ ही रखते थेI जिस लिपि में यह रिकाँर्ड किया जाता था उस लिपि का नाम ही इनके नाम पर कैथी पड़ गया I कैथी (कायती, कायस्थी, कैथी)I विद्वान इस लिपि का उद्भव सोलहवीं सदी में मानते हैंI अशोक वर्मा ने अपनी पुस्तक ‘‘कायस्थों की सामाजिक पृष्ठभूमि’’ में एक शोध का जिक्र किया है जिसमें कैथी को अंगिका से विकसित अंगी लिपि का वर्तमान रूप बताया गया है I

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